राजा हरिप्रसाद मल्ल

राजा हरिप्रसाद मल्ल

Oct 28, 2023 - 14:17
Nov 13, 2023 - 23:01
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राजा हरिप्रसाद मल्ल

गोरखपुर जनपद मुख्यालय से लगभग 60 कि.मी. दूर बड़हलगंज से 2 किमी. पूरब जिले के दक्षिणी-पूर्वी छोर पर सरयू नदी के किनारे प्रतीक बन यह किला अंग्रेजों को उस क्षेत्र से होकर आगे जाने के लिए
नरहरपुर राज्य का किला स्थित था। 1857 ई. में राष्ट्रीय स्वाभिमान का सीना तान कर खड़ा चुनौती बन गया था।

उस समय यहाँ के राजा हरि प्रसाद मल्ल ने अंग्रेजों की दासता को ठुकरा कर उनको चुनौती देना श्रेयस्कर समझा और माँ भारती के लिए हुए स्वाधीनता संघर्ष में उनका ध्वस्त किला देशभक्ति का इतिहास बन खण्डहर के रूप में परिवर्तित हो आज भी उस संघर्ष की दास्तान कह रहा है।

सन् 1857 के देशव्यापी स्वाधीनता संघर्ष की आँधी जब ने अंग्रेजी गुलामी की जंजीरों को तोड़कर स्वाधीनता में जीने का सपना गोरखपुर पहुँची तो अंग्रेजी दासता से त्रस्त इस क्षेत्र की अनेक रियासतों सजोया। इन राजाओं ने पूर्वांचल के वीर योद्धा व क्रान्तिकारी बाबू कुँवर सिंह के संघर्ष को बल प्रदान करने के लिए उनका सब प्रकार से साथ
देने का निर्णय लिया और गोरी हुकूमत की दासता को ठुकरा कर उनका आदेश मानने से इन्कार कर उनके सामने एक चुनौती बन कर खड़े हो गये।

नरहरपुर स्टेट के तत्कालीन राजा हरिप्रसाद मल्ल भी एक ऐसे ही जो देश की आन पर अपना सर्वस्व समर्पित कर देशभक्त राजा गुमनामी में खो गये । राजमहल से ठीक सटे उस समय सरयू (घाघरा) नदी बहा करती थी। कठबाँसी से घिरा नौ खण्डों में बना राजमहल अंग्रेजी सरकार की आंखों में किरकिरी की तरह चुभ रहा था क्योंकि उसने अन्य गद्दारों की बाँति अंग्रेजों के आगे नतमस्तक होने से नकार दिया था। राजा हरिप्रसाद बल्ल ने बरहज पैना के बाबूओं के विद्रोह का समर्थन करते हुए गोरी

हुकूमत के विरूद्ध शंखनाद कर दिया था और उनके क्षेत्र (राज्य) से जा रहे अंग्रेजों के अंन्त्र भण्डार व आवश्यक वस्तुओं को ले जाने वाली नावों को न केवल रोक दिया बल्कि लुटवा दिया और नरहरपुर स्टेट से उनका आवागमन भी पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया।

राजा ने किले के साथ-साथ सरयू नदी के जल क्षेत्र में भी धनुर्विद्या से निपुण सैनिकों की तैनाती कर रखी थी जिनके अनुमति के बिना नदी से गुजरना असम्भव
था। इसलिए अंग्रेज इस फिराक में थे कि कोई ऐसा कारण मिल जाय जिससे इस स्वाभिमानी राजा का समूल नष्ट किया जा सके।

किले के सामने सरयू नदी के उस पार वर्तमान मऊ जनपद के अन्तर्गत दोहरीघाट के समीप स्थित बहादुरपुर गाँव में स्थित नील की कोठी अंग्रेजी-सत्ता का केन्द्र बन गयी थी। यहाँ से वे किले के गतिविधियों पर नजर रखे हुए थे। अंग्रेजों ने गोपनीय रूप से तोपें मँगा कर वहाँ तैनात कर रखा था।

राजा हरिप्रसाद मल्ल नील कोठी में तोपों की तैनाती से अनभिज्ञ थे। उन्हें इस बात की जानकारी भी नहीं थी कि अंग्रेज उन्हें समाप्त करने का बहाना ढूढ़ रहे हैं।

जनमानस में प्रचलित कथाओं के अनुसार एक रात नदी उस पार नील की कोठी (वर्तमान मऊ जिला अन्तर्गत दोहरीघाट कस्बे के पूरब बहादुरपुर गाँव) में जब अंग्रेज शराब के नशे का आनन्द ले मौजमस्ती में डूबे हुए थे, उसी समय राजा हरिप्रसाद मल्ल ने एक ऐसा निर्णय ले लिया जिसका इन्तजार स्वयं अंग्रेज सरकार के नुमाइन्दे कर रहे थे।

उस क्षण राजा ने अपने तीरन्दाज सैनिकों को आवाज दे धनुष पर बाण चढ़ा प्रत्यंचा खींच नील की कोठी की तरफ तीरों को छोड़ दिया जो अंग्रेजों के सीने में उतर गई। अंग्रेजों को इसी का इन्तजार था और यही नरहरपुर स्टेट व राज परिवार के तबाही का कारण बन गया। आनन-फानन में अंग्रेजों ने तोपों को बाहर निकाला और तोपों का मुँह किले की तरफ कर दिया और थोड़ी ही देर बाद नील की कोठी की तरफ से तोपें गरजने लगी और |

इस पार स्थित किले पर गोले गिरने लगे। अंग्रेजों के अत्याधुनिक तोपों व बन्दूकों के सामने राजा व उनके सैनिक बेवश हो गये। अंग्रेजों ने उनके किले को निशाना बना उसे ध्वस्त करना शुरू कर दिया। रात भर गोला-बारी होती रही। राजा को अंग्रेजों से ऐसी चुनौती की उम्मीद नहीं

थी। कहते हैं कि जब सुबह गोलाबारी रुकी तो कठबाँसी के मजबूत कवच से घिरे नौ खण्ड के महल के सात खण्ड नष्ट हो चुके थे। केवल किले के उत्तरी छोर के दो आँगनों वाला कुछ हिस्सा ही शेष बचा था।

• राजा हरिप्रसाद मल्ल का कुछ पता नहीं था। उनके बारे में अलग-अलग किवदंतियाँ प्रचलित हैं। एक मत के अनुसार राजा व रानी दोनों उस गोलाबारी में शहीद हो गए जबकि दूसरी किवदंती के अनुसार राजा जब
समझ गए की जान नहीं बचेगी तो वे अपनी रानी व परिवार सहित पहले मझौली तत्पश्चात नेपाल चले गए और गुमनामी में खो गये। नरहरपुर किले पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया। वायसराय द्वारा

• राजा की सम्पत्ति की देख-रेख तथा उनकी भेड़ीताल की जागीर गोपालपुर राजा को सौप दिया गया। स्वाधीनता के संघर्ष में कुर्बान हुए नरहरपुर स्टेट के महल का अवशेष एक टीले के रूप में आज भी विद्यमान है और
तत्कालीन गोरखपुर में हुए युद्ध की गौरव गाथा को सँजोये हुए है।

आजादी की नींव हैं ये हस्ताक्षर

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