बालक रामचंद और सोना
बालक रामचंद और सोना
सन् 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में तत्कालीन गोरखपुर जनपद (वर्तमान देवरिया) के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों, वीर सपूतों तथा क्रान्तिकारियों में बालक रामचन्द्र तथा सोना का बलिदान आज भी लोगों को झकझोर कर रख देता है। इनकी शहादत ने दिखा दिया था कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हर उम्र के भारतवासी किस तरह कुर्बानी देने के लिए तथा कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार थे।
अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन के समय भारतीयों ‘करो या मरो’ के बीच देवरिया-कुशीनगर मार्ग पर स्थित बसन्तपुर घूसी के ‘खादी ग्रामोद्योग मिडिल पाठशाला’ में कक्षा 7 का विद्यार्थी रामचन्द्र छोटी गण्डक नदी तट के किनारे ग्राम नौतन, हथियागढ़, थाना रामपुर का निवासी था।
शहीद रामचन्द्र का जन्म 01 अप्रैल 1929 को पिता बाबूलाल प्रजापति एवं माता मोतीरानी के घर में हुआ था । आन्दोलन के व्यापक रूप में फैल जाने के कारण उस समय देवरिया में अत्यधिक पुलिस बल लगा कर दहशत उत्पन्न कर दी गई थी। देवरिया तहसील में कचहरी, पुलिस स्टेशनों एवं रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाली सड़को पर प्रवेश निषेध के साथ उन्हें प्रतिबन्धित कर दिया गया था। सभी क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर पुलिस के जवान लगातार गश्त कर रहे थे। 13 अगस्त 1942 को यह तय हुआ कि कल स्कूल के लड़के देवरिया जाएँगे और एस.डी.एम. को माँग पत्र देंगे।
14 अगस्त, 1942 को छात्रों का विशाल जुलूस देवरिया सदर तहसील की ओर चल पड़ा। सभी छात्र अत्यन्त उत्साह और जोश के साथ धीरे-धीरे नारे लगाते आगे बढ़ रहे थे। ‘महात्मा गाँधी की जय’, ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ के नारों से आकाश गूँज रहा था। इस जुलूस का नेतृत्व 13
वर्षीय छात्र रामचन्द्र कर रहा था।
14 अगस्त 1942 को रामचन्द्र जुलूस 1720 पूर्वांचल में स्वाधीनता संघर्ष के साथ अपने गाँव से 14 किमी. की दूरी तय करके देवरिया पहुँचा था। उसके साथ ग्राम-सहोदरी पट्टी, थाना-तरकुलवा, तहसील-देवरिया सदर (अब जिला) का निवासी रामचन्द्र का सहपाठी सोना के साथ गांधी म एवं छिन्नू भी जुलूस में सम्मिलित हो गए। पुलिस की आँखों से बचकर इन किशोर छात्रों का जुलूस देवरिया की कचहरी में प्रवेश कर गया। यहाँ तैनात पुलिसकर्मियों को देख दल जरा भी विचलित नहीं हुआ। पुलिसवाले भी छोटे पर बहुत ध्यान नहीं दिये।
उस समय देवरिया कचहरी पर कि फहरा रहा था। पुलिस की आँखों से बच-बचाकर किसी प्रकार तथा तीनो मित्र सोना, गोपी और छिन्नू कचहरी के छत पर चढ़ने में सात हो गये। उन लोगों ने मिलकर कचहरी पर लगे ब्रिटिश यूनियन देव को उतार कर फेक दिया तथा वहाँ तिरंगा लहरा दिया। इसके पश्चात रामचन्द्र, सोना एवं उसके दल ने ‘इंकलाब जिन्दाबाद, भारतमाता की जय के नारे लगाने शुरू कर दिये।
अब रामचन्द्र व सोना अंग्रेज अधिकारियों के नजरों से पि सके। आश्चर्यचकित परगनाधिकारी उमराव सिंह ने अंग्रेज सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दे दिया। पुलिस ने तत्काल इन दोनों छात्रों अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलानी शुरू कर दिया।
रामचन्द्र तथा सोना, गोषों क छिन्नू के सीने में गोलियाँ लगी और शरीर गोलियों से क्षत-विक्षत हो गया। सोना, गोपी और छिन्नू की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई किन्तु रामचन्द्र की साँसें चल रही थीं। जनसमूह रामचन्द्र को लेकर अस्पताल की ओर दौड़ा परन्तु रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। छोटी गण्डक के तट पर रामचन्द्र का अन्तिम संस्कार किया गया।
इस घटना ने यह दिखा दिया कि स्वतन्त्रता पाने के लिए हर उम्र के देशवासी कुछ भी करने को तैयार हैं। शहीद रामचन्द्र व सोना की शहादत से तत्कालीन गोरखपुर जनपद के छात्रों को अत्यधिक प्रोत्साहन मिला और यहाँ के छात्र अधिक से अधिक संख्या में आन्दोलन में भाग लेने के लिए तत्पर हो गये। उन्होंने अनेक स्थानों पर सन् 1942 के आन्दोलन को सफल बनाया। आजादी के इन शहीदों के स्मारक देवरिया शहर में रामलीला मैदान के सामने बना दया है।
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